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गीत नहीं गता हु।

गीत नहीं गता हु, बेनकाब चेहरे है, दाग बड़े गहरे है। टूटता तिलस्म, आज सच से भय खता हु। गीत नहीं गता हु। गीत नहीं गता हु।   लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर, अपनों के मेले में मीत नहीं पता हु।   गीत नहीं गता हु। गीत नहीं गता हु। पीठ में छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा फांद, मुक्ति के क्षणो में बार बार बंध जाता हु, गीत नहीं गता हु। गीत नहीं गता हु।    गीत नया गता हु।

मौत से ठन गई।

मौत से ठन गई।  जूझने का मेरा कोई इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर खड़ी हो गयी , यु लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गयी। मौत की उम्र क्या? दो पल भी नहीं। ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।   में जी भर जिया, में  मन से मरू, लौट कर आऊंगा , कुछ से क्यों डरु? तू दबे पाव, चोरी छुपे से न आ, सामने वॉर कर फिर मुजे आज़मा। मौत से बेखर ज़िन्दगी का सफर, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। बात ऐसी नहीं की कोई गम ही  नहीं, दर्द अपने पराये कुछ कम भी नहीं। प्यार मुझे परयो से इतना मिला, न अपनों से बाकि है कोई गिला   हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आधी मे जलाए है बूजते दिए।      आज जगजोड़ता तेज़ तूफान है, नाव भवरो की बाहो मै मेहमान है। देख तूफा का तेवर, तेवरी तन गई।   मौत से थान गई, मौत से थान गई     - परम पूजनीय भारत रत्न पद्मा विभूषित श्री अटल बिहारी वाजपेयी  

आज़ादी अभी अधूरी है।

  पंधरा ऑगस्ट का दिन कहता आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होना अभी बाकि है, रावी की सपथ ना पूरी है। जिनकी लाशो पर पग धार कर आज़ादी भारत में आई , वे अभ तक है खानाबदोश, गम की काली बदली छाई । कलकत्ते के फूटपाथो  पर जो आंधी पानी सहते है, उनसे पूछो पंधरा अगस्त के बारे मै क्या कहते है।   भूखो को गोली नंगो को हथियार पहनाये जाते है , सूखे कंठो से जेहादी नारे लगवाए जाते है।   लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया , पख्तूनो पर गिलगित पर है, गमगीन गुलामी का साया। बस इसी लिए तो कहता हु , आज़ादी अभी अधूरी है, कैसे उल्लास मनाऊ मै , थोड़े दिन की मजबूरी है। दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएंगे , गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएगे। उस सुवर्ण दिवस के लिए आज से कमर कैसे बलिदान करे जो पाया उस में खो न जाये , जो खोया उसका ध्यान करे।        - परम पूजनीय भारत रत्न पद्मा विभूषित श्री अटल बिहारी वाजपेयी