आज़ादी अभी अधूरी है।

 

पंधरा ऑगस्ट का दिन कहता आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होना अभी बाकि है, रावी की सपथ ना पूरी है।

जिनकी लाशो पर पग धार कर आज़ादी भारत में आई ,
वे अभ तक है खानाबदोश, गम की काली बदली छाई ।

कलकत्ते के फूटपाथो  पर जो आंधी पानी सहते है,
उनसे पूछो पंधरा अगस्त के बारे मै क्या कहते है।  

भूखो को गोली नंगो को हथियार पहनाये जाते है ,
सूखे कंठो से जेहादी नारे लगवाए जाते है।  

लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया ,
पख्तूनो पर गिलगित पर है, गमगीन गुलामी का साया।

बस इसी लिए तो कहता हु , आज़ादी अभी अधूरी है,
कैसे उल्लास मनाऊ मै , थोड़े दिन की मजबूरी है।

दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएंगे ,
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएगे।

उस सुवर्ण दिवस के लिए आज से कमर कैसे बलिदान करे
जो पाया उस में खो न जाये , जो खोया उसका ध्यान करे।
 

    

- परम पूजनीय भारत रत्न पद्मा विभूषित श्री अटल बिहारी वाजपेयी
 

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