मौत से ठन गई।

मौत से ठन गई। 

जूझने का मेरा कोई इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर खड़ी हो गयी ,
यु लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गयी।

मौत की उम्र क्या? दो पल भी नहीं।
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
 
में जी भर जिया, में  मन से मरू,
लौट कर आऊंगा , कुछ से क्यों डरु?
तू दबे पाव, चोरी छुपे से न आ,
सामने वॉर कर फिर मुजे आज़मा।

मौत से बेखर ज़िन्दगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं की कोई गम ही  नहीं,
दर्द अपने पराये कुछ कम भी नहीं।

प्यार मुझे परयो से इतना मिला,
न अपनों से बाकि है कोई गिला  

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आधी मे जलाए है बूजते दिए।     

आज जगजोड़ता तेज़ तूफान है,
नाव भवरो की बाहो मै मेहमान है।
देख तूफा का तेवर, तेवरी तन गई।  

मौत से थान गई, मौत से थान गई  

 - परम पूजनीय भारत रत्न पद्मा विभूषित श्री अटल बिहारी वाजपेयी

 

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