Zakir Khan Poem
मैं शून्य पे सवार हूं ||
मैं शून्य पे सवार हूं ||
बेअदब सा मैं खुमार हूं ,
अब मुश्किलों से क्या डरूं ,
मैं खुद कहर हज़ार हूं |
मैं शून्य पे सवार हूं ||
के ऊंच-नीच से परे ,
मजाल हु आंख में भरे ,
मैं लड़ पड़ा हूं रात से ,
मशाल हाथ में लिए |
न सूर्य मेरे साथ है ,
तो क्या नहीं यह बात है ,
वह शाम को था ढल गया ,
वह रात से था डर गया ,
मैं जुगनुओं का यार हूं |
मैं शून्य पे सवार हूं ||
के भावनाएं मर चुकी ,
संवेदनाए खत्म है |
अब दर्द से मैं क्या डरूं ,
जिंदगी ही जख्म है |
मैं बीच रहा की मात हूं ,
बे चांद रात सिया हूं |
मैं काली का सिंगार हूं ||
मैं शून्य पे सवार हूं ||
हूं राम का सा तेज मैं ,
लंकापति सा ज्ञान हूं ,
किसकी करूं आराधना ,
सबस जोे मैं महान हूं |
ब्रह्मांड का में सार हूं |
मैं जलप्रवाह निहाल हूं ||
मैं शून्य पर सवार हूं ||
-Zakir Khan
Awesome lines ' beyond the imagination @ Zakir Kan you are best
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